Sunday, 20 July 2014

पूजा सन 1949 की बात है । श्री श्री ठाकुर यति -आश्रम मेँ उपविष्ट हैँ । पश्चिम बंगाल के कम्युनिष्ट पार्टी का एक नेता मिलने आए । बातचीत करने के दौरान वे पूछे - ठाकुर, जिनको पुकारने से मिलते नहीं हैं, मनुष्य की विपत्ति में उपस्थित नहीं होते हैं, जो मनुष्य की आशा -भरोसा को पूर्ण नहीं करते हैं वैसे भगवान की मनुष्य पूजा क्यों करता है और ऐसे भगवान की हमलोगों को प्रयोजन ही क्या है ? देखते हैं कितने लोग उनको पुकारते हैं, लेकिन वे तो कभी सामने उपस्थित नहीं होते हैं ? श्री श्री ठाकुर तम्बाकू पीते -पीते बोलेँ - मान लेँ आप रेस्टोरेन्ट में बैठकर कप में चाय पी रहें हैं , चाय का हर घूँट आपको एक नई उत्तेजना का आस्वादन दे रहा हो । लेकिन इसी कप में कुछ समय पहले हो सकता है एक संक्रामक रोगग्रस्त व्यक्ति चाय पीकर गया जिसकी जानकारी आपको नहीं है । अपने आनंद का आस्वादन पाने के चक्कर मेँ प्रतिषेधक की तरफ अपने कोई दृष्टि नहीँ दिया - जिसके चलते हो सकता है वह रोग जीवाणु आपके शरीर के अन्दर प्रवेश करके छुपा रहा और कुछ वर्षो बाद वह आपके शरीर को रोगजीर्ण बना दिया । आप उस समय सोचने लगे मैं तो इस रोग की इच्छा जाहिर नहीं किया था तो भी मुझे यह क्यों हुआ ? रोग से ग्रसित होने के बाद उसका कारण जानना कोई बड़ी बात नहीं है - रोग नहीं होने के लिए जो-जो करना उचित था वह आपने नहीं किया । जीवन को रोग से ग्रसित होने बचाने के लिए जो-जो सावधानी बरतनी चाहिए थी वह आपने नहीँ किया- यदि वह अज्ञानता के चलते हो तब भी प्रकृति के इतिहास में उसके लिए क्षमा नहीं है । गलती से आग में हाथ डालने से आग किसी को क्षमा नहीं करता है चाहे वह कितना ही मासूम क्योँ न हो । इसीलिए जो-जो करने से जिसकी प्राप्ति होती है उसे नहीं करने पर कैसे आपकी इच्छा पूर्ण होगी ? पानी बनने की सामग्री ( Hydrogen और Oxygen) हो सकती है आपके आस -पास ही हो, लेकिन आपके चाहने से ही क्या वह पानी बन जाता है -उसको Laboratory में ले जाकर एक Certain Temperature एवं आवोहवा सृष्टि करने पर Hydrogen और Oxygen आपस में प्रतिक्रिया कर जल बनाता है । इसलिए प्रत्येक क्रिया ही एक विधि या नियम का अवलम्बन करती है । इसलिए भगवान का एक नाम है ' विधाता '। वे विधि को धारण करते हैं एवं स्वयं स्रष्टा होने के बावजूद वे भी इस सृष्टि के नियम के माध्यम से सृष्ट होते हैं । इसलिए जो-जो नीति या विधि के माध्यम से मनुष्य भगवान को प्राप्त कर सकता है उस विधि को छोड़कर उनको पुकारना व्यर्थ है । अतः गीता में है - " अवज्ञानन्ति माँग: मूटा मानुसिँह: तनुमाभितम् ।" "के तुमि विप्लवी?"से


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