Monday, 21 July 2014
¤:अनुमति :¤ श्यामाचरण मुखर्जी उर्फ गोपाल -दा और फिलानथ्रापी आफिस के कर्मी दुर्गाचरण सरकार दोनोँ राजबाडी , फरीदपुर जिला जाने के लिए परमदयाल श्री श्री ठाकुर से अनुमति माँगे । श्री श्री ठाकुर जाने के लिए असहमति व्यक्त किए । जाने की अनुमति नहीं दिए । लेकिन गोपाल -दा एवं दुर्गाचरण-दा वहाँ जाने का जिद करने लगे । अंत में श्री श्री ठाकुर उदास मन से धीमे स्वर में बोले -गोपाल ! सोमवार सुबह तक लेकिन राजबाडी से आश्रम वापस लौट आना । जरूर लौट आऊँगा , बोलकर गोपाल-दा और दुर्गाचरण-दा राजबाडी, जाने के लिए निकल पड़े । राजबाड़ी जाने के लिए ईश्वरडिह स्टेशन से ट्रेन पकड़कर पोड़ादाह जं॰ उतरना पड़ता था और फिर दूसरी ट्रेन पकड़कर राजबाडी के लिए राजसाही स्टेशन में उतरना पड़ता था । वहाँ से लौटते समय वे दोनों राजसाही से निर्दिष्ट दिन ट्रेन पकड़ कर पोड़ादह जं॰ तक आए । पोड़ादह जं॰ पहुँचने पर जब गोपाल -दा उतरने लगे तो दुर्गाचरण-दा उनको रोकते हुए बोले मैं तो कलकत्ता तक का टिकट लिया हूँ । गोपाल - दा कलकत्ता जाने से अस्वीकार करते हुए बोले - मैं श्री श्री ठाकुर से आज लौटने का वादा करके आया हूँ । बातों -बातों में ट्रेन खुल गई । गोपाल-दा उतरना चाह कर भी दुर्गाचरण-दा के बातों में उलझ कर उतर नहीं पाए ।आगे जाकर ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त हो गई । गोपाल -दा और दुर्गाचरण-दा दोनों इस दुर्घटना में मारे गए । इस दुर्घटना के कुछ दिनों बाद श्री शैलेन्द्रनाथ भट्रटाचार्य हिमायतपुर सत्संग आश्रम में एक दिन श्री श्री ठाकुर से हाथ जोड़कर निवेदन करते हुए पूछे थे -ठाकुर !आप तो सबकुछ जानते हैं -गोपाल -दा ट्रेन दुर्घटना में मारे जाएँगे । आप यदि दया करके पहले ही बता देते तो वे बच सकते थे । श्री श्री ठाकुर बहुत गंभीर होकर बोले थे - केवल डर दिखाकर और भविष्य - वाणी करके यदि तुमलोगों को मेरे पास रखना होता , तब मेरा प्रयोजन तो सिर्फ इतना भर ही काम के लिए होता । "मैं " ही यदि तुमलोगों की चाह रहूँ , तो जो मैं बोलता हूँ उसे मानने में इतना प्रश्न क्यों है ? ---" इष्टमनन " से
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